कोरोनावायरस वैक्सीन बनाम मेडिसिन
वैक्सीन का इतिहास
एडवर्ड जेनर ने 1796 ईसवी में चेचक (काऊ पॉक्स) बीमारी के खिलाफ वैक्सीनेशन पद्धति को खोजा। दुनिया की पहली वैक्सीन बनाने का श्रेय इन्हीं को दिया जाता है। इससे जुड़ी हुई एक कहानी भी सुनी जाती है। एडवर्ड जेनर जो कि एक डॉक्टर थे उन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि जो लोग काऊ पॉक्स बीमारी से पीड़ित हो जाते हैं, उनमें दोबारा बीमारी होने की संभावना कम हो जाती है परंतु वह इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं थे तो उन्होंने इस बारे में प्रयोग करने का मन बनाया। जो लोग जानवरों के आस-पास रहते थे जैसे की गाय उन लोगों में यह बीमारी ज्यादा पाई जाती थी। उन्होंने अपने प्रयोग में सबसे पहले काऊ पॉक्स बीमारी से पीड़ित एक गाय के थन, से इंजेक्शन के माध्यम से द्रव निकाल कर अपने यहां काम करने वाली महिला की बेटी को लगा दिया। यह द्रव बहुत थोड़ी मात्रा में लड़की के खून में इंजेक्ट किया गया। एक-दो दिनों में ही उस लड़की के अंदर काऊ पॉक्स बीमारी के लक्षण आने लगे परंतु यह बीमारी गंभीर रूप न ले सकी और धीरे-धीरे वह खुद ही ठीक होती चली गई।
कुछ महीनों के पश्चात डॉक्टर एडवर्ड जेनर ने थोड़ी अधिक मात्रा द्रव की लेकर पुनः उस लड़की के खून में इंजेक्ट कर दिया परंतु इस बार उस लड़की के अंदर कॉउ पॉक्स बीमारी का कोई भी लक्षण नहीं उभरा इस तरह वह अपने उस विचार को मजबूत कर सके जिसके तहत उन्होंने पाया था कि यह बीमारी एक बार हो जाने पर दोबारा उसके लक्षण नहीं आते।
वैक्सीन का प्रभाव
अध्ययन में पाया गया कि जब हमारे खून के अंदर किसी बीमारी के वायरस प्रविष्ट होते हैं तो हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम (रोग प्रतिरोधक क्षमता) उस वायरस को बाहरी तत्व मानकर उससे लड़ने के लिए हमारे शरीर के अंदर एंटीबॉडीज का निर्माण करता है जो लंबे समय तक हमारे शरीर में बने रहते हैं। साथ ही इससे लड़ने के लिए आवश्यक प्रक्रिया मेमोरी सेल्स में स्टोर हो जाती है जो जीवन पर्यंत बनी रहती है।
पोलियो का उदाहरण
तो वायरस को मारने के लिए उसी वायरस का कमजोर संस्करण जब किसी व्यक्ति के शरीर में प्रविष्ट कराया जाता है तो इसे ही वैक्सीनेशन कहते हैं दुनिया भर में वायरस को मारने के लिए यह पद्धति सबसे अधिक कारगर मानी जाती है।
दवा का प्रभाव
आइए अब हम वायरस को मारने वाली दवा के बारे में समझते हैं। वास्तव में दवाइयां विशेष केमिकल से बनाई जाती हैं जो अलग-अलग तरीकों से वायरस को समाप्त करते हैं। इन्हें एंटीवायरल मेडिसिन कहते हैं। जब वायरस हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं तो यह अपने डीएनए स्ट्रक्चर में बदलाव लाते रहते हैं जिस कारण कोई एक दवा इनके ऊपर अधिक प्रभावी नहीं हो पाती क्योंकि जब तक यह दवा उस वायरस को मारती है तब तक उनमें से कुछ वायरस इस दवा के खिलाफ स्वयं को तैयार कर लेते हैं तथा उनसे उत्पन्न होने वाले अन्य वायरस पर यह दवा कारगर नहीं हो पाती जिस कारण हमें कोई दूसरी दवा देनी पड़ती है। परंतु तब तक यह वायरस पुनः स्वयं को परिवर्तित कर लेते हैं। अब दवा प्रभावी नहीं रह जाती। सामान्यतः वायरस को मारने के लिए दवाइयों की एक साइकिल होती है जो वायरस की संख्या को सीमित रखती है ताकि धीरे-धीरे बीमारी इम्यून सिस्टम के माध्यम से समाप्त हो जाए परंतु दवाइयों के माध्यम से वायरस को पूर्णतः समाप्त करना कठिन है।
एड्स का उदाहरण
इसका एक उदाहरण एड्स बीमारी है। एड्स बीमारी के लिए दवाइयों की एक साइकिल चलती रहती है और वायरस की संख्या सीमित रहती है।परंतु एड्स के वायरस शरीर से पूरी तरह समाप्त नहीं हो पाते इसलिए वर्तमान में एड्स का पूरी तरह इलाज संभव नहीं है परंतु भविष्य में हम वैक्सीन के माध्यम से इसका इलाज खोज पाएं इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
अभी तक एड्स के लिए कोई भी कारगर वैक्सीन नहीं बन सकी है। यह एड्स के वायरस एचआईवी के द्वारा तुरंत तुरंत किए जाने वाले डीएनए में परिवर्तन की वजह से है। अन्य तकनीकी कारण भी इसके लिए जिम्मेदार हैं।
कोरोनावायरस के लिए उपलब्ध दवा
कोरोनावायरस के लिए भी कई दवाइयों पर प्रयोग जारी है। इनमें से कुछ है रेमदेसीविर, फाविपिरावीर, हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वाइन, इंडोमथासीन इत्यादि। यह दवाइयां या तो कोरोनावायरस को मारती हैं या हमारे इम्यून सिस्टम को मजबूत करके हमारे शरीर को उन वायरस को मारने के लिए प्रेरित करती हैं। परंतु यह सभी दवाइयां वैक्सीन की जगह नहीं ले सकती। वास्तव में यदि इस बीमारी को पूरी तरह दुनिया से खत्म करना है तो इसका इलाज दवा की तुलना में वैक्सीन के माध्यम से कहीं आसानी से हो सकता है। परंतु वैक्सीन के माध्यम से यह पूरी तरह दुनिया से खत्म हो जाएगा ऐसा भी नहीं कहा जा सकता। इसका एक उदाहरण एड्स है जिसकी प्रभावी वैक्सीन अभी तक नहीं बन सकी है। हम नहीं चाहेंगे कि ऐसा कुछ कोरोनावायरस के लिए भी हो।
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